जब सागर में स्याही तक नहीं मिलती थी, तब गौर साहब ने सागर में विश्वविद्यालय खोला: गोविंद सिंह राजपूत
अमन संवाद/भोपाल
डाॅ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर का 33वां दीक्षांत समारोह शुक्रवार को आयोजित किया गया। इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने परम तपस्वी युग पुरूष 1008 श्री रामभद्राचार्य जी के चरणों में प्रणाम करते हुए कहा कि हमारा यह सौभाग्य है कि इतने बड़े संत के चरण हमारे सागर में पड़े जिससे हम धन्य हो गये। श्री राजपूत ने कहा कि मुझे खुशी और गर्व महसूस होता है कि मैं जिस विश्वविद्यालय में पढ़ा आज वहां के दीक्षांत समारोह में आप सभी के बीच छात्रों को डिग्रियां बांटने का अवसर मिला है।
श्री राजपूत ने कहा कि डाॅं. हरिसिंह गौर जिन्हें सागर बुंदेलखण्ड की अनेक पीढ़ियां, गौर बब्बा के नाम से स्मरण करती है। उनके इस विशाल कीर्त स्तंभ में हम सब लाखों विघार्थियों को अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि मुझे बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि डाॅं. हरिसिंह जी गौर नागपुर एवं दिल्ली विश्वविघालय के संस्थापक कुलपति थे। जिस समय सागर में स्याही नहीं मिलती थी उस समय डाॅ.गौर ने सागर विश्वविघालय की स्थापना की थी जो कि देश का उस समय का चैथा विश्वविघालय था। संविधान निर्माता कमेटी के सदस्य डाॅं हरिसिंह गौर ने अपने जीवन भर की अपार संपत्ति विश्वविघालय निर्माण में लगा दी। विधि विषय पर लिखी गई उनकी किताबें देश भर में पढ़ाई जाती है। वहीं इन किताबों का अध्ययन लंदन में भी होता है। श्री राजपूत ने राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियोें को दोहराते हुए कहा कि
सरस्वती-लक्ष्मी दोनों ने दिया तुम्हे सादर जय-पत्र,
साक्षी है, हरिसिंह तुम्हारा ज्ञानदान का, अक्षय सत्र।
मंत्री श्री राजपूत ने सभी छात्र-छात्राओं को उज्जवल भविष्य की शुभकामना देते हुए विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा की गई व्यवस्थाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि डाॅ. गौर साहब के कारण सागर का नाम विश्व भर में जाना जाता है, हम सब उनके मानस पुत्र हैं। इस तरह के कार्यक्रम निरंतर चलते रहें और आप सभी इसी तरह सफलता की ओर बढ़ते रहें।
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