प्रमोद साहू
अमन संवाद /बैरसिया
नगर बैरसिया इन दिनों भीषण जल संकट से जूझ रहा है। गर्मी की शुरुआत होते ही नगर के कई हिस्सों में नल सूख गए हैं। तीन से चार दिनों तक पानी की एक बूंद तक नहीं आ रही, जिससे लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। हालात ऐसे हैं कि सुबह से शाम तक लोग पानी की तलाश में भटक रहे हैं। महिलाएं सिर पर मटके उठाए दूर-दराज के इलाकों से पानी ढोने को मजबूर हैं, वहीं छोटे-छोटे बच्चे भी पानी की एक बाल्टी के लिए लाइन में खड़े हैं।
*यह स्थिति अचानक नहीं आई*
हर साल गर्मी में यही संकट आता है, लेकिन इस बार मामला और भी गंभीर हो गया है। नगर पालिका प्रशासन यदि समय रहते तैयारी करता, तो शायद आज यह दिन देखने को न मिलता। बिरहा डेम, जहां से नगर की जल आपूर्ति होती है, वहां भी जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। कई जगह मोटरें जल चुकी हैं या खराब पड़ी हैं, जिससे पानी की सप्लाई पूरी तरह ठप है।शहर की गलियों में सूखे नलों को देखकर लोगों का धैर्य जवाब देने लगा है। गर्मी अपने चरम पर है और पीने तक का पानी न मिलना किसी त्रासदी से कम नहीं। क्या यह जिम्मेदारी सिर्फ जनता की है? क्या प्रशासन और जनप्रतिनिधि केवल चुनावी वादों तक सीमित रह गए हैं?ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है। कई गांवों में तो पानी की व्यवस्था बिल्कुल ठप है। एक तरफ सरकारी दस्तावेज़ों में विकास की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, और दूसरी तरफ जमीनी हकीकत यह है कि बच्चे स्कूल छोड़कर पानी लाने में लगे हैं।
*इस पूरे संकट के बीच एक और बड़ी चिंता की बात है*
नगर में मौजूद बड़ी संख्या में बेजुबान मवेशी और जानवर, जो इंसानों की तरह अपनी तकलीफ कह नहीं सकते। जब नगर में लोगों को पीने तक का पानी नहीं मिल पा रहा है, तो इन बेजुबानों का क्या होगा? हैरानी की बात है कि इनके लिए अब तक न तो कोई पानी की टंकी रखवाई गई है और न ही किसी तरह की व्यवस्था की गई है। गर्मी में ये जानवर प्यास से बेहाल हैं और सड़कों पर भटकते नजर आ रहे हैं। प्रशासन को चाहिए कि इन जानवरों के लिए भी जगह-जगह पानी की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा? कब लोगों और बेजुबान जानवरों की प्यास को समझेगा? क्या हर साल इसी संकट से गुजरते रहेंगे बैरसिया के लोग?ज़रूरत अब केवल भरोसे की नहीं, बल्कि ठोस कार्यवाही की है। नगर की जनता अब इंतज़ार में नहीं जवाब में है। पानी केवल एक सुविधा नहीं, जीवन की बुनियादी ज़रूरत है और जब यह छिनने लगे तो सवाल उठना लाज़मी है।
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