*लेखक: सन्तोष कुमार*
जनजातीय गौरव दिवस भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती के अवसर पर पूरे देश में आदिवासी समाज की उन प्रेरक कहानियों को सम्मान दिया जा रहा है जिन्होंने संघर्ष, कर्म और संकल्प से नए भारत के विकास में योगदान दिया है। इन्हीं कहानियों में मध्य प्रदेश के भोपाल जिले की जनजातीय ग्राम पंचायत भानपुर केकड़िया की कालीबाई का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनकी जिंदगी में आया यह परिवर्तन न सिर्फ व्यक्तिगत सफलता की कहानी है बल्कि यह इस बात का जीवंत प्रमाण भी है कि जब सरकार की योजनाओं का लाभ सही समय पर सही लोगों को मिलता है तो गांव, समाज और पूरी अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव अवश्य आता है। कालीबाई कभी पारंपरिक खेती पर निर्भर रहती थीं जहां मौसम की मार सिंचाई की कमी और सीमित आय उनके जीवन को प्रभावित करती थी। अनिश्चित आय का बोझ कई बार उनके परिवार के भविष्य पर चिंता बनकर मंडराता था। परिस्थितियों से लड़ते हुए भी उन्होंने मन में उम्मीद की लौ कभी बुझने नहीं दी।
“कभी सूखी मिट्टी पर उम्मीद बोने वाली कालीबाई आज अपने ही हाथों उगाई हरियाली में भविष्य की चमक देखती हैं। गरीबी, सीमित साधन और मौसम की मार के बीच भी उन्होंने हार नहीं मानी। सरकार की योजनाओं से मिली सहायता सिर्फ पैसों की मदद नहीं थी वह उनके संघर्ष को मिली नई ताकत थी। जब पहले उनके खेत में सूना सन्नाटा रहता था आज वहीं मेहनत, आत्मविश्वास और समृद्धि की नई कहानी लिखी जा रही है। कालीबाई की बगिया में उगते हर फल के साथ यह संदेश भी खिलता है कि अगर अवसर मिले तो जनजातीय बेटियाँ भी दुनिया को बदलने की क्षमता रखती हैं।
ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार द्वारा ग्रामीण व जनजातीय समुदाय के उत्थान के लिए चलाई जा रही योजनाएँ उनके जीवन में आशा की किरण बनकर आईं। ‘एक बगिया माँ के नाम’, मनरेगा और हरित सशक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था जैसे कार्यक्रमों ने कालीबाई को एक नया रास्ता दिखाया एक ऐसा रास्ता जो मेहनत और दूर दृष्टि के बल पर समृद्धि की ओर ले जाता है। कालीबाई ने अपनी एक एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट के 100 पौधे लगाने का निर्णय लिया। यह कदम केवल खेती बदलने का नहीं बल्कि जीवन बदलने का निर्णय था। ड्रैगन फ्रूट जैसी फसल के लिए शुरुआती निवेश, तकनीक और सुरक्षा आवश्यक होती है लेकिन सरकार की ओर से मिली 2.87 लाख रुपये की सहायता ने उनकी इस नई यात्रा को मजबूती प्रदान की। बाजार की मांग को देखते हुए उन्होंने मिश्रित खेती शुरू की जिससे उनकी आय अधिक स्थायी और जोखिम मुक्त बनी उनकी प्रगति का दूसरा बड़ा आधार मनरेगा बना। मनरेगा के तहत 4.50 लाख रुपये की स्वीकृति से बने 120×120 मीटर के खेत-तालाब ने उनकी खेती को स्थायी सिंचाई प्रदान की। पहले जहां उनका खेत बारिश पर निर्भर था आज सालभर पानी उपलब्ध है। इससे फसलों की सुरक्षा, उत्पादकता और हरियाली तीनों में गुणात्मक वृद्धि हुई। यह बदलाव मनरेगा की असली शक्ति को दर्शाता है कि यह योजना सिर्फ रोजगार नहीं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संरचनात्मक सुरक्षा देने का बड़ा माध्यम है।
आज कालीबाई का खेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हरित विकास मॉडल और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रकृति केन्द्रित ग्रामीण विकास विज़न का सजीव उदाहरण है। जैविक तरीकों, प्राकृतिक उर्वरकों, मिश्रित फसलों और स्थायी सिंचाई ने उनकी लागत घटाई है और मुनाफा बढ़ाया है। कालीबाई अब सिर्फ सफल किसान नहीं बल्कि गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। कई महिलाएँ उनसे देख-सीखकर अपनी जमीन पर नई संभावनाएँ तलाश रही हैं।
भगवान बिरसा मुंडा ने अपने संघर्षों से जनजातीय समाज को सम्मान अधिकार और आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया था। आज कालीबाई जैसी महिलाएँ उसी मार्ग पर चलकर आधुनिक भारत में अपनी पहचान को नई ऊँचाइयाँ दे रही हैं। उनकी सफलता बताती है कि आत्मनिर्भर भारत की नींव तभी मजबूत होगी जब गांव और वन क्षेत्र की महिलाएँ मजबूत होंगी और उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ सही समय पर मिलता रहेगा।
जनजातीय गौरव दिवस के इस विशेष अवसर पर कालीबाई की यह हरित यात्रा हमें याद दिलाती है कि सरकारी सहयोग प्रकृति के प्रति सम्मान और व्यक्तिगत मेहनत इन तीनों के साथ मिलकर ग्रामीण भारत में अद्भुत परिवर्तन संभव हैं। कालीबाई की बगिया केवल खेती नहीं बल्कि आशा,परिश्रम और उज्ज्वल भविष्य का हरा-भरा प्रतीक है।
लेखक सन्तोष कुमार
संपादक दैनिक अमन संवाद समाचार पत्र भोपाल
9755618891



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