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जिसने दर्द को सेवा में बदला वह जननायक: केशव प्रसाद मौर्य

लेखक : सन्तोष कुमार

उत्तर प्रदेश की विशाल धरती पर जहां राजनीति अक्सर शोर में खो जाती है वहीं एक ऐसा नाम है जो सत्ता की चमक नहीं बल्कि अपने संघर्षों की सादगी और जनता के प्रति गहरे अपनापन से पहचाना जाता है केशव प्रसाद मौर्य। उनका जीवन उस दीपक की तरह है जो जितनी तेज हवा चली उतना ही उजाला देता गया। जिस इंसान ने खुद की पीड़ा को कभी बोझ नहीं बनने दिया बल्कि उसे जनता की सेवा की शक्ति में बदल दिया वह आज उत्तर प्रदेश का उप मुख्यमंत्री और करोड़ों दिलों का सहारा है।



केशव जी का जन्म किसी सम्पन्न परिवार में नहीं हुआ था। उनके बचपन में अभाव, संघर्ष और कठिनाइयाँ हर दिन का हिस्सा थीं। चाय बेचना, अख़बार बाँटना, और मेहनत-मजदूरी करना यही उनके जीवन की शुरुआती तस्वीर थी। लेकिन इन कठिनाइयों ने उनके सपनों को तोड़ा नहीं बल्कि और मजबूत किया। जब दूसरे बच्चे खेलते थे तब केशव जी अपनी परिस्थितियों से लड़ना सीख रहे थे। जीवन के उन्हीं संघर्ष भरे दिनों ने उनके भीतर सेवा का वो बीज बोया जो आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है। समय बीतता गया पर उनकी आत्मा नहीं बदली न उनका अपनापन, न उनकी सादगी।राजनीति में आने के बाद भी वे जमीन से उतने ही जुड़े रहे, जितने अपने संघर्ष के दिनों में थे। उनकी आवाज में आदेश नहीं समझ होती है उनके कदमों में अहंकार नहीं संवेदना होती है और उनकी आँखों में सत्ता नहीं, जनता का दर्द दिखाई देता है।जब केशव प्रसाद मौर्य गाँवों में जाते हैं तो वे नेता नहीं लगते कोई अपना लगता है। वह बुजुर्गों के पैरों में बैठकर आशीर्वाद लेते हैं किसानों के कंधे पर हाथ रखकर उनकी परेशानी पूछते हैं और गरीब परिवारों के घरों में बैठकर रोटी का स्वाद लेते हैं। यह सिर्फ व्यवहार नहीं यह वही संघर्ष है जो उन्होंने स्वयं जिया है। शायद इसलिए वह जनता के दुखों को सिर्फ सुनते नहीं महसूस भी करते हैं। उनका हर निर्णय मानवीय संवेदना से भरा होता है।किसी गांव की सड़क बनाते समय वह कहते हैं— यह सड़क उस मां के लिए भी आसान होनी चाहिए जो धीरे-धीरे चलती है और उस किसान के लिए भी जो रोज इसी रास्ते से अपने खेत जाता है। यह विचार किसी बड़े पद से नहीं बड़े दिल से आता है।सड़कें हों, पुल हों, इंफ्रास्ट्रक्चर हो या गरीबों के लिए योजनाएँ उनका लक्ष्य हमेशा स्पष्ट रहा है जनता की सुविधा, जनता की समृद्धि, और जनता की मुस्कान। कई बार देखा गया है कि वह किसी दिव्यांग की मदद के लिए कार्यक्रम बीच में रोक देते हैं किसी गरीब की समस्या सुनते-सुनते देर रात हो जाती है या किसी बेटी की शादी में चुपचाप मदद पहुँचवा देते हैं। यह सब उनकी राजनीति का हिस्सा नहीं उनकी आत्मा का हिस्सा है।आज उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में लोग जब उनका नाम लेते हैं तो उनके चेहरे पर सम्मान और अपनापन दोनों झलकते हैं। लोग कहते हैं— केशव जी सिर्फ नेता नहीं, हमारे अपने हैं और यह भाव किसी भाषण से नहीं बल्कि वर्षों की निष्ठा, संघर्ष और सेवा से पैदा हुआ है। उनका जीवन यह साबित करता है कि बड़ा बनने के लिए बड़े घर में जन्म लेना जरूरी नहीं बड़ा दिल होना जरूरी है और यही दिल उन्हें उस मुकाम पर खड़ा करता है जहाँ लोग नेता नहीं जननायक कहते हैं। केशव प्रसाद मौर्य का जीवन इस बात का सबसे सुंदर प्रमाण है कि जिस व्यक्ति ने अपने दर्द को नहीं छिपाया बल्कि उसे जनता की सेवा में बदल दिया वह सिर्फ नेता नहीं युगों तक याद रहने वाला जनसेवक बन जाता है।

*इनसेट बॉक्स* 

केशव प्रसाद मौर्य सिर्फ नेता नहीं हैं वह उन संघर्षों का नाम हैं जिन्हें लाखों लोग रोज झेलते हैं। उनकी आंखों में आज भी वही संवेदना चमकती है जो उन्होंने गरीबी में जीते हुए महसूस की थी। शायद इसी वजह से जब वह किसी किसान का हाथ थामते हैं या किसी गरीब मां की दशा समझते हैं तो यह राजनीति नहीं उनके अपने दर्द का प्रतिबिंब होता है। जनता उनसे जुड़ती नहीं उनमें खुद को पहचानती है। और यही पहचान उन्हें उप मुख्यमंत्री नहीं बल्कि सच्चा जननायक बनाती है।

इनसेट बॉक्स 

कौशांबी की धूल भरी गलियों से उठकर प्रदेश और देश की राजनीति में अपनी पहचान बनाने वाले केशव प्रसाद मौर्य आज भी अपने मिट्टी के प्रति उसी श्रद्धा से जुड़े हैं जैसे एक बेटा अपनी मां से जुड़ा रहता है। उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिले से निकलकर उन्होंने साबित किया कि संघर्ष मंज़िल से बड़ा नहीं होता। हाल ही में बिहार चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत में उनकी रणनीति, नेतृत्व और जमीनी समझ ने निर्णायक भूमिका निभाई यह सिर्फ उनकी राजनीतिक क्षमता का प्रमाण नहीं बल्कि उस कौशांबी के बेटे का गर्व है जिसने अपनी मिट्टी को हमेशा सिर पर रखा और देश को भी जीत दिलाई।

लेखक सन्तोष कुमार संपादक 

दैनिक अमन संवाद समाचार पत्र भोपाल 

मो.न . 9755618891

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