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मेहनत की मिसाल बनी अर्चना चौधरी: जब एक शिक्षिका ने पूरे दमोह को प्रदेश में दिलाया पहला स्थान

जिनेश जैन

अमन संवाद/दमोह

सुबह की पहली घंटी के साथ जगथर गांव की पगडंडियों पर दौड़ते बच्चों की आंखों में आज सिर्फ किताबों के सपने नहीं हैं बल्कि एक भरोसा है कि मेहनत रंग लाती है। यह भरोसा उन्हें दिया है माध्यमिक शाला जगथर की शिक्षिका अर्चना चौधरी ने, जिनकी लगन और समर्पण ने एक साधारण से ग्रामीण विद्यालय को मध्यप्रदेश के शैक्षणिक मानचित्र पर प्रथम पंक्ति में खड़ा कर दिया है। शैक्षणिक कार्यों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दमोह जिला प्रदेश में अव्वल बना है और इस उपलब्धि के केंद्र में हैं अर्चना चौधरी।


कभी सामान्य सुविधाओं वाला यह विद्यालय, सीमित संसाधनों और चुनौतियों से घिरा हुआ था। लेकिन अर्चना चौधरी ने हालात को बहाना नहीं बनाया बल्कि उन्हें अवसर में बदला। उन्होंने यह मान लिया था कि बच्चों की उड़ान उनके पंखों से नहीं बल्कि शिक्षक की सोच से तय होती है। किताबें ही नहीं कहानियां, गतिविधियां, सवाल-जवाब और जीवन से जुड़े उदाहरण उनकी कक्षा में पढ़ाई एक बोझ नहीं बल्कि उत्सुकता का उत्सव बन गई।

अर्चना चौधरी की शिक्षण शैली का सबसे खूबसूरत पहलू यह रहा कि उन्होंने बच्चों को सुना। उनकी जिज्ञासाओं को महत्व दिया कमजोरियों को पहचानकर उन्हें संबल दिया। नियमित मूल्यांकन, व्यक्तिगत मार्गदर्शन और निरंतर संवाद के जरिए उन्होंने हर बच्चे को आगे बढ़ने का अवसर दिया। परिणाम यह हुआ कि न केवल बच्चों का सीखने का स्तर बढ़ा बल्कि स्कूल आने की उनकी रुचि भी बढ़ती चली गई।

विद्यालय की चारदीवारी से बाहर निकलकर अर्चना चौधरी ने अभिभावकों और गांव के लोगों को भी शिक्षा के इस सफर का साथी बनाया। बैठकों, संवाद और विश्वास के जरिए उन्होंने यह संदेश दिया कि बच्चे की सफलता केवल स्कूल की नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी है। यही सामुदायिक सहभागिता विद्यालय की ताकत बन गई।

जिला शिक्षा विभाग द्वारा किए गए शैक्षणिक गुणवत्ता मूल्यांकन में माध्यमिक शाला जगथर ने उपस्थिति, सीखने के स्तर, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों और शाला प्रबंधन जैसे सभी मापदंडों पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। सर्वाधिक अंक प्राप्त कर विद्यालय ने दमोह जिले को मध्यप्रदेश में प्रथम स्थान दिलाया एक ऐसी उपलब्धि जिसने जिले का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।

इस सफलता पर अर्चना चौधरी की आंखों में गर्व से अधिक विनम्रता झलकती है। वे कहती हैं, “यह मेरी अकेली जीत नहीं है। यह उन बच्चों की जीत है जिन्होंने खुद पर भरोसा किया, उन अभिभावकों की जीत है जिन्होंने साथ दिया। मेरा सपना है कि हमारे ग्रामीण बच्चे भी शहरों के बच्चों की तरह आत्मविश्वास और प्रतिस्पर्धा के साथ आगे बढ़ें।” उनके शब्दों में थकान नहीं, आगे बढ़ने का संकल्प है।

जिला शिक्षा अधिकारी एस.के. नेमा ने इस उपलब्धि को अन्य विद्यालयों के लिए प्रेरणास्रोत बताते हुए कहा कि जगथर माध्यमिक शाला ने यह साबित कर दिया है कि संसाधनों की कमी कभी गुणवत्ता की राह में बाधा नहीं बन सकती। जिले भर में इस खबर से खुशी और उत्साह का माहौल है।

जगथर की यह कहानी केवल एक स्कूल की सफलता नहीं बल्कि उस विश्वास की कहानी है कि जब शिक्षक अपने दायित्व को मिशन बना ले तो वह सिर्फ बच्चों का भविष्य नहीं बदलता पूरे समाज की तस्वीर बदल देता है। अर्चना चौधरी की यह सफलता दमोह ही नहीं पूरे प्रदेश के लिए शिक्षा में आशा की नई किरण बनकर सामने आई है।

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