*लेखक : सन्तोष कुमार*
समाज की असली ताकत हमेशा भीड़ में नहीं बल्कि उन खामोश कदमों में छिपी रहती है जो बिना किसी शोर के अंधेरे को चीरते हुए आगे बढ़ते हैं। वे लोग जो न मंच माँगते हैं न कैमरे तलाशते हैं ना ही तालियों की अपेक्षा रखते हैं बस चुपचाप अपना कर्तव्य निभाते रहते हैं। ऐसे ही गुमनाम नायकों को पहचान देने की एक संवेदनशील पहल है जो भोपाल से उठ रही है और जिसका केंद्र है एक नाम—राधेश्याम अग्रवाल।
जनवरी 2026 में भोपाल में प्रस्तावित जनसंवेदना कल्याण फाउंडेशन का 21वां स्थापना दिवस एवं नववर्ष अभिनंदन समारोह केवल एक आयोजन नहीं है। यह उन लोगों के प्रति समाज की ओर से एक विनम्र नमन है जिन्होंने अपने हिस्से की सुविधाएँ छोड़कर दूसरों की पीड़ा को प्राथमिकता दी। यह समारोह उन हाथों का अभिनंदन है जो वर्षों से समाज को थामे हुए हैं पर खुद कभी सामने नहीं आए।
आज जब सेवा भी कई बार प्रचार परियोजनाओं और संस्थागत पहचान की मोहताज हो गई है तब राधेश्याम अग्रवाल की अगुवाई में यह संकल्प एक सशक्त संदेश देता है कि सच्ची सेवा वही है जो निस्वार्थ हो निजी हो और भीतर से निकली हो। यही कारण है कि यह सम्मान किसी संगठन या NGO के लिए नहीं बल्कि उन व्यक्तियों के लिए है जो अपनी जेब अपना समय और अपना जीवन समाज, राष्ट्र और मानवता को समर्पित कर चुके हैं। इन गुमनाम नायकों की कहानियाँ किसी रिपोर्ट में नहीं मिलतीं लेकिन उनके काम से किसी का जीवन सँवर जाता है। कोई अनाथ बच्चा पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनता है कोई असहाय बुज़ुर्ग सम्मान के साथ जीवन जी पाता है तो कहीं कोई टूटता परिवार फिर से खड़ा हो जाता है। यह सेवा कोई आंकड़ा नहीं बल्कि संवेदना की जीवित मिसाल होती है।
जनसंवेदना कल्याण फाउंडेशन की 21 वर्षों की यात्रा भी इसी भावना की कहानी है। “मानव सेवा ही माधव सेवा” यहाँ केवल एक नारा नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। यही दर्शन बताता है कि सेवा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक उसमें करुणा, निरंतरता और ईमानदारी न हो। यह संस्था बीते दो दशकों से इसी मूल भावना के साथ समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों के बीच काम करती आ रही है। इस सम्मान समारोह की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि चयन प्रक्रिया पूर्णतः स्वतंत्र और निष्पक्ष जूरी समिति द्वारा की जाएगी। यह भरोसा आज के समय में बेहद जरूरी है जब योग्यताएँ कई बार सिफारिशों के नीचे दब जाती हैं। यहाँ सम्मान वही पाएगा जिसने बिना किसी स्वार्थ के समाज को कुछ लौटाया है। इस आयोजन को और भी विशेष बनाता है यह तथ्य कि चयनित विभूतियों को सम्मान प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कर कमलों से प्रस्तावित है। यह न केवल सम्मानित व्यक्तियों के लिए गर्व का क्षण होगा बल्कि यह संकेत भी है कि शासन स्तर पर भी निःस्वार्थ सेवा के मूल्य को समझा और स्वीकार किया जा रहा है।
राधेश्याम अग्रवाल का व्यक्तित्व इस पूरी पहल की आत्मा है। चार दशकों की पत्रकारिता और साहित्य साधना ने उन्हें समाज की धड़कन से जोड़े रखा। शब्दों के साथ-साथ संवेदनाओं को साधने वाले इस व्यक्तित्व ने यह सिद्ध किया कि पत्रकारिता केवल सूचना देना नहीं बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाना भी है। शायद यही कारण है कि उनके नेतृत्व में जनसंवेदना का हर प्रयास दिखावे से दूर और इंसानियत के करीब दिखाई देता है।
यह संपादकीय केवल एक आयोजन की प्रशंसा नहीं है बल्कि समाज से एक प्रश्न भी है क्या हम उन लोगों को पर्याप्त सम्मान देते हैं जो बिना किसी अपेक्षा के हमारे लिए खड़े रहते हैं? यदि यह समारोह उन गुमनाम नायकों के चेहरे पर एक क्षण की संतुष्टि और आत्मिक सुख ला सका तो यह अपने उद्देश्य में सफल होगा। क्योंकि जब सम्मान सच्चे अर्थों में दिया जाता है तो वह केवल एक दिन की तालियों तक सीमित नहीं रहता वह समाज की चेतना को लंबे समय तक झकझोरता है।
*इनसेट बॉक्स*
*वे लोग जिनके नाम किसी सूची में नहीं होते जिनके कार्यों की तस्वीरें कभी अख़बारों की सुर्खियाँ नहीं बनतीं वही वास्तव में समाज की नींव होते हैं। कोई अनाथ बच्चे की पढ़ाई का सपना चुपचाप पूरा कर देता है कोई असहाय बुज़ुर्ग की दवा अपने हिस्से की ज़रूरत छोड़कर ले आता है तो कोई टूटते हुए परिवार को फिर से खड़ा कर देता है। राधेश्याम अग्रवाल की अगुवाई में जनसंवेदना कल्याण फाउंडेशन का यह सम्मान समारोह उन्हीं खामोश नायकों के लिए है जो बिना शोर बिना मंच और बिना अपेक्षा के समाज को हर दिन थोड़ा बेहतर बनाते हैं। यही सम्मान की सबसे मानवीय परिभाषा है।*

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