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मध्य प्रदेश की थाली में छुपा ज़हर


मध्य प्रदेश में खाद्य पदार्थों में मिलावट का स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है। यह सिर्फ एक उपभोक्ता समस्या नहीं बल्कि अब जनस्वास्थ्य का बड़ा संकट बन चुका है। कभी दूध में यूरिया और डिटर्जेंट,तो कभी मिठाइयों में सिंथेटिक रंग और तेल में सस्ता पाम ऑयल मिलाना अब आम बात हो गई है। बाजार में चमकदार दिखने वाला हर सामान जरूरी नहीं कि शुद्ध भी हो। आज हर घर की थाली में अनजाने में ज़हर परोसा जा रहा है। 

राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में हर साल हजारों नमूने जांचे जाते हैं,जिनमें से लगभग हर तीसरा नमूना मिलावटी पाया जाता है। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, सागर और ग्वालियर जैसे शहरों में छापों के दौरान लाखों रुपये की नकली मिठाइयाँ, घी, तेल और मसाले पकड़े जा चुके हैं। 

पहले यह समस्या सिर्फ शहरों तक सीमित थी, लेकिन अब गांवों में भी खुला तेल, नकली घी और दूषित दूध बिकना आम बात हो गई है। दूध में पानी, स्टार्च और यूरिया मिलाकर उसे गाढ़ा दिखाया जाता है, तेल में घटिया पाम ऑयल और घी में हाइड्रोजिनेटेड वसा का उपयोग किया जाता है। त्योहारों के समय सिंथेटिक रंगों से बनी मिठाइयाँ बाजार में भर जाती हैं। हल्दी में लेड क्रोमेट, मिर्च में ईंट का पाउडर और धनिया में सूखा पत्ता मिलाना आम हो गया है। 

सब्जियों को चमकाने के लिए केमिकल और वैक्स का इस्तेमाल भी बढ़ गया है। यह सब हमारे शरीर पर धीरे-धीरे असर डालता है। डॉक्टरों का कहना है कि मिलावटी खाद्य पदार्थों से लीवर, किडनी और हृदय संबंधी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। बच्चों में कमजोरी और महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन के मामले भी बढ़े हैं। यह धीमा जहर न सिर्फ शरीर बल्कि समाज की नैतिकता को भी कमजोर कर रहा है।

*इनसेट बॉक्स* 

*मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं और वे चाहते हैं कि राज्य में खाद्य मिलावट पूरी तरह से समाप्त हो। उन्होंने बार-बार अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि दूध, घी, तेल, मसाले और मिठाइयों में मिलावट करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। लेकिन कागज़ों पर जितनी तैयारी और नीयत दिखाई देती है, जमीनी स्तर पर उतना परिणाम नहीं निकल पा रहा है। सीमित संसाधन,निरीक्षण की कमी और कभी-कभी स्थानीय दबाव की वजह से उनकी मंशा के अनुरूप कार्रवाई पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रही है। जब उपभोक्ता जागरूक होगा,व्यापारी ईमानदार बनेगा और प्रशासन जवाबदेह रहेगा, तभी मिलावट मुक्त मध्य प्रदेश का सपना साकार हो सकेगा। शुद्ध भोजन ही स्वस्थ समाज की नींव है,और यही असली विकास का आधार भी है।* 

कानून की बात करें तो देश में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 लागू है, लेकिन इसका पालन पूरी तरह नहीं हो पाता। 

खाद्य विभाग में स्टाफ की कमी, पुरानी लैब और धीमी जांच प्रक्रिया के कारण दोषी अक्सर बच निकलते हैं। कई मामलों में रिपोर्ट आने में महीनों लग जाते हैं और तब तक आरोपी नया नाम लेकर कारोबार शुरू कर देता है। राज्य सरकार ने 2019 में “मिलावट से मुक्ति अभियान” शुरू किया था, जिसने शुरुआत में काफी प्रभाव डाला। सैकड़ों जगह छापे पड़े और लाखों की मिलावटी सामग्री जब्त की गई, लेकिन कुछ ही समय में यह अभियान धीमा पड़ गया। स्थायी निगरानी, तकनीकी संसाधन और जनजागरूकता की कमी इसके प्रमुख कारण रहे। इसके बावजूद इस अभियान ने यह संदेश जरूर दिया कि अगर सरकार और जनता साथ आएं तो मिलावट पर रोक लग सकती है। इस समस्या से निपटने के लिए केवल प्रशासनिक कार्रवाई काफी नहीं है। जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अगर उपभोक्ता सतर्क रहेगा, उत्पाद खरीदते समय लेबल और एफएसएसएआई लाइसेंस नंबर जांचेगा, तो मिलावटखोरों की हिम्मत टूटेगी। मीडिया की भूमिका भी बेहद अहम है। अखबारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर मिलावट विरोधी अभियान चलाने से लोगों में जागरूकता बढ़ेगी। भविष्य में सरकार को तकनीक का उपयोग बढ़ाना होगा। हर उत्पाद पर क्यूआर कोड आधारित ट्रैकिंग सिस्टम लागू होना चाहिए, ताकि ग्राहक को पता चले कि सामान कहाँ से आया है। फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए दोषियों को जल्दी सजा मिलनी चाहिए और बार-बार पकड़े जाने वालों का लाइसेंस स्थायी रूप से रद्द किया जाना चाहिए। स्कूलों में बच्चों को भी फूड सेफ्टी की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि वे शुरू से ही शुद्धता की अहमियत समझें। 

मिलावट पर रोक तभी लग सकेगी जब समाज इसे केवल कानून का नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी का विषय माने। हमें यह समझना होगा कि सस्ता और स्वादिष्ट भोजन से ज्यादा जरूरी है सुरक्षित और शुद्ध भोजन।


*लेखक* 


सन्तोष कुमार 

संपादक दैनिक अमन संवाद समाचार पत्र भोपाल 

9755618891

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