*लेखक : सन्तोष कुमार*
भोपाल… झीलों का शहर, शांति का शहर और वह शहर जिसे कभी उसकी सुकून भरी रफ्तार के लिए जाना जाता था आज उसी शहर की सड़कों पर बढ़ता ट्रैफ़िक एक अनकही बेचैनी पैदा कर रहा है। सुबह हो या रात गाड़ियों की अंतहीन कतारें अब सिर्फ़ यात्रा का हिस्सा नहीं रहीं बल्कि एक चेतावनी हैं कि शहर जिस ओर बढ़ रहा है वह रास्ता उसकी ही सुरक्षा को चुनौती देने लगा है। चौराहों पर खड़े स्कूली बच्चे, ऑफिस के लिए भागते लोग, सड़क किनारे चिंतित चेहरों वाली भीड़ हर कोई इस अव्यवस्था की कीमत अपने समय, तनाव और कभी-कभी अपने प्रियजनों की सुरक्षा से चुका रहा है। हादसों की बढ़ती संख्या ने भोपाल के परिवारों में एक अदृश्य डर और सतर्कता की खामोश परत बिछा दी है। ऐसा लगता है जैसे शहर एक ऐसी दौड़ में शामिल हो गया है जिसमें मंज़िल से ज़्यादा जोखिम तेज़ी से बढ़ रहा है। इस पूरी तस्वीर में भोपाल ट्रैफ़िक पुलिस की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन हकीकत यह है कि ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही हैं और संसाधन उसी गति से नहीं। कई चौराहों पर सीमित बल के साथ खड़े जवान पसीना बहाते हुए ट्रैफ़िक संभालते हैं। भीड़ अचानक बढ़ जाए तो पूरा तंत्र दबाव में आ जाता है। कहीं खराब सिग्नल चुनौती बनते हैं कहीं अतिक्रमण सड़क की साँसें रोक देता है। पुलिस कोशिश कर रही है दिशा-निर्देश जारी हैं लेकिन बढ़ते शहर के साथ तालमेल बनाना अब जटिल होता जा रहा है। सड़कें भी मानो अपनी परेशानियाँ बयां कर रही हों कहीं सिकुड़ चुकीं, कहीं टूटी, कहीं अवैध कब्ज़ों से घुटी हुई। ऊपर से ओवरस्पीडिंग, ट्रैफ़िक नियमों की अनदेखी और रेसिंग जैसी प्रवृत्तियाँ शहर को और ज्यादा असुरक्षित बना रही हैं।
भोपाल अब “चलने वाला शहर” नहीं बल्कि “झेलने वाला शहर” बनता जा रहा है। इसी भीड़, तनाव और हादसों की चिंताओं के बीच एक उम्मीद भी मौजूद है मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की वह प्राथमिकता जिसमें सड़क सुरक्षा को केवल बैठकों या रिपोर्टों तक सीमित न रखकर एक ज़मीनी अभियान की तरह लिया जा रहा है। ब्लैक स्पॉट चिन्हित करने से लेकर पुलिस मॉनिटरिंग मजबूत करने और व्यवस्थाओं के उन्नयन तक मुख्यमंत्री के निर्देश शहर को राहत देने के लिए ठोस कदमों की दिशा बन रहे हैं। इन प्रयासों में यह भरोसा छिपा है कि भोपाल की सड़कें भले चौड़ी न हों लेकिन सुरक्षित जरूर बन सकती हैं। आज भोपाल उस मोड़ पर खड़ा है जहां उसे नए सिग्नल, नई सड़कें या नए नियम ही नहीं बल्कि एक नई सोच की भी जरूरत है एक ऐसी सोच जो पुलिस, सरकार और नागरिक तीनों के साझा प्रयास से बने। जब तक हेलमेट सिर्फ़ चालान से बचने का तरीका रहेगा और सिग्नल तोड़ना फुर्सत का खेल सुरक्षा की धमकियां कम होने वाली नहीं। यह समय केवल सुधारों का नहीं बदलाव का है और यह बदलाव सड़क से नहीं हमारी सोच से शुरू होगा। भोपाल की सबसे बड़ी चुनौती आज ट्रैफ़िक नहीं बल्कि वह मनोवृत्ति है जो सुरक्षा को महत्व देने में अब भी देर कर देती है।
*इनसेट बॉक्स*
*शहरवासियों के नाम एक चेतावनी*
भोपाल की सड़कें अब सिर्फ़ रास्ते नहीं रहीं वे एक चेतावनी बन चुकी हैं। बढ़ती तेज़ रफ़्तार, बिगड़ता ट्रैफ़िक नियंत्रण और रोज़-रोज़ होने वाली दुर्घटनाएँ साफ़ कहती हैं कि यदि अभी नहीं संभले तो आने वाले समय में सड़कें शहर की सबसे गंभीर त्रासदी बन जाएँगी। सरकार और पुलिस प्रयास कर रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सुधार हमारे व्यवहार में ही संभव है वरना यह खतरा हर चौराहे पर और हर मोड़ पर हमारे इंतज़ार में खड़ा है।
लेखक सन्तोष कुमार संपादक
दैनिक अमन संवाद समाचार पत्र भोपाल
9755618891

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