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देहदान से बढ़कर कोई दान नहीं : 86 वर्षीय शिक्षिका ने जीवन के अंतिम पड़ाव पर दिया सबसे अमूल्य उपहार

अमन संवाद / भोपाल

कभी-कभी कोई निर्णय इतना महान होता है कि वह उम्र, परिस्थिति और सीमाओं से परे जाकर सीधे मानवता के हृदय को छू जाता है। भोपाल के शक्ति नगर में रहने वाली 86 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षिका ने ऐसा ही निर्णय लिया एक ऐसा संकल्प जो उनके जीवन को अंतिम क्षण तक समाज की रोशनी से भर देगा। जब उन्होंने समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में देहदान संकल्प अभियान की जानकारी पढ़ी तो उनके अंतर्मन में वर्षों की शिक्षिका वाली संवेदनाएँ जाग उठीं। उन्होंने संस्था को स्वयं बुलाया आंखों में अपनापन और आवाज़ में दृढ़ता लिए कहा “जीवन भर मैंने पढ़ाया है अब चाहती हूँ कि मेरे जाने के बाद भी किसी के सीखने-समझने में मेरी देह सहायक बने।” और फिर उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के देहदान संकल्प पत्र भर दिया मानव सेवा का सबसे निष्काम, सबसे पवित्र दान।


जनवरी 2025 में उनके पति आर.एन. तिवारी का निधन हो गया था। उस अकेलेपन और जीवन की गहराइयों से गुजरते हुए भी उन्होंने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को सबसे ऊपर रखा। अपने जीवनसाथी की स्मृति को दिल में संजोए उन्होंने यह कदम उठाकर यह संदेश दिया कि उम्र भले ही 86 वर्ष हो जाए लेकिन मानवता की लौ कभी बूढ़ी नहीं होती।

उनका यह संकल्प उन अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है जो सोचते हैं कि वे समाज को क्या दे सकते हैं। जनसंवेदना कल्याण समिति के संस्थापक अध्यक्ष राधेश्याम अग्रवाल बताते हैं कि संस्था वर्षों से देहदान प्रेरणा अभियान चला रही है और इसी अभियान ने कई परिवारों को मानव सेवा के इस अद्भुत मार्ग से जोड़ा है।

इच्छुक व्यक्ति 98260-13975 या 0755-2576007 पर संपर्क कर सकते हैं। 

समिति के स्वयंसेवक घर पहुंचकर संकल्प पत्र भरवाते हैं और प्रमाणपत्र भी वहीं सौंपते हैं। जल्द ही इस दानदाता का फोटो जारी किया जाएगा ताकि लोग देख सकें कि सच्ची महानता कैसी दिखती है। यह अभियान न केवल जागरूकता का माध्यम है बल्कि उन लोगों के लिए उम्मीद भी है जो चिकित्सा शिक्षा और शोध से लाभान्वित होंगे। शक्ति नगर की इस वृद्ध शिक्षिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जीवन का अंतिम निर्णय भी उतना ही सुंदर,उतना ही अर्थपूर्ण हो सकता है बस उसमें मानवता की मिट्टी बसनी चाहिए।

उनका यह कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए संदेश है कि—

“देह तो एक दिन मिट्टी बन ही जाती है पर दान बनकर वही देह किसी और के जीवन में उजाला भर देती है।”

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