अमन संवाद/भोपाल
बदलती जीवनशैली और बढ़ती बीमारियों के दौर में यदि कोई मंच प्रकृति स्वास्थ्य और परंपरा को एक साथ जोड़ता दिखाई देता है तो वह है भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में शुरू हुआ 11वां अंतरराष्ट्रीय वन मेला। यहां जड़ी-बूटियों की खुशबू है आयुर्वेद का भरोसा है और आदिवासी रसोई का स्वाद जो सीधे जीवन से संवाद करता है।
बुधवार 17 दिसम्बर को मेले का शुभारंभ करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी प्रकृति आधारित चिकित्सा और जीवन पद्धति है। कोविड काल को याद करते हुए उन्होंने कहा “जब आधुनिक दुनिया समाधान खोज रही थी तब आयुर्वेदिक काढ़ा अमृत बनकर सामने आया। इसने न केवल शरीर बल्कि विश्वास को भी मजबूत किया।” मुख्यमंत्री का यह संदेश मेले की मूल भावना स्वस्थ जीवन और समृद्ध वन को रेखांकित करता है।
इस अंतरराष्ट्रीय वन मेले में देश के 24 राज्यों से आए करीब 350 स्टॉल लगाए गए हैं जहां जड़ी-बूटियों से लेकर आयुर्वेदिक औषधियां, वनोपज, हस्तशिल्प और पारंपरिक खाद्य सामग्री उपलब्ध है। अलीराजपुर का दाल-पनिया और बांधवगढ़ क्षेत्र के गोंडी व्यंजन लोगों को उस स्वाद से परिचित करा रहे हैं जो पीढ़ियों से जंगल और संस्कृति के साथ पनपा है।
मेले का एक महत्वपूर्ण पहलू नि:शुल्क आयुर्वेदिक परामर्श है। वन मंत्री दिलीप अहिरवार के अनुसार यहां 200 आयुर्वेदिक चिकित्सक आमजन को स्वास्थ्य परामर्श दे रहे हैं जिससे मेला केवल प्रदर्शनी न रहकर स्वास्थ्य जागरूकता का केंद्र बन गया है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर मध्यप्रदेश की समृद्ध वन संपदा का भी उल्लेख किया। वन विहार, बांधवगढ़, पेंच, कूनो, सतपुड़ा और गांधीसागर जैसे टाइगर रिजर्व को उन्होंने संरक्षण और विकास के सफल उदाहरण बताते हुए कहा कि वन केवल संसाधन नहीं बल्कि जीवन का आधार हैं। मेले में बच्चों के लिए बनाया गया किड्स जोन, लोकनृत्य, ऑर्केस्ट्रा, नुक्कड़ नाटक और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां इसे पारिवारिक और शिक्षाप्रद अनुभव बना रही हैं। वहीं 19 और 20 दिसंबर को होने वाली अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में भारत के साथ नेपाल और भूटान के प्रतिनिधियों की भागीदारी इस आयोजन को वैश्विक संदर्भ भी देती है। 23 दिसंबर तक चलने वाला यह अंतरराष्ट्रीय वन मेला संदेश देता है कि यदि प्रकृति के साथ संतुलन बनाया जाए तो स्वास्थ्य, संस्कृति और समृद्धि तीनों साथ चल सकते हैं।

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