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पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चिंताजनक है शासन-प्रशासन का रवैया

पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चिंताजनक है शासन-प्रशासन का रवैया


अक्सर यह सुनने या देखने को मिल जाता है कि शासन प्रशासन के अधिकारीयों का एक अघोषित आदेश यह होता है कि  "मेन स्ट्रीम मीडिया" के लोगों को ही प्रेस कांफ्रेंस में बुलाया जाए .....आदि ...यह अघोषित आदेश अगर सच है तो "पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चिंताजनक है।" हम इसकी निंदा करते हैं क्योंकि यह अघोषित आदेश न केवल यूट्यूबर्स के लिए बल्कि छोटे व मझोले वर्ग के अखबारों / डिजिटल प्लेटफॉर्म में कार्यरत सभी पत्रकारों और मीडिया प्रतिनिधियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।


👉इस आदेश से :- 


1. मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग सकता है।

2. यह आदेश उन यूट्यूबर्स और डिजिटल मीडिया प्रतिनिधियों को उनके काम को प्रभावित कर सकता है उन्हें वंचित कर  सकता है। जो ईमानदारी से अपना दायित्व निभा रहे हैं।

3. जिले के अधिकतर थाना प्रभारियों पर मानसिक दबाव अतिरिक्त डाल सकता है।

4. इस आदेश से पत्रकारिता में विविधता और समावेशीपन कम हो सकता है।


इसमें कतई दो राय नहीं कि यह अघोषित आदेश प्रेस/मीडिया के विभिन्न प्रारूपों के बीच भेदभाव पैदा कर सकता है और पत्रकारिता के डिजिटल परिवर्तन को नहीं पहचान रहा है। 

जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इसके बजाय, एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो सभी प्रकार के प्रेस/मीडिया प्रतिनिधियों को समान अवसर प्रदान करता हो।


यहां सवाल यह उठता है कि क्या मैन स्ट्रीम मीडिया के लोग क्या अनैतिक, आपराधिक कृत्यों को अंजाम नहीं देते हैं ?

जो लोग इसके पक्षधर हैं, उन्हें बड़े - बड़े मीडिया घरानों के अखबारों व टी. वी. चैनलों में कार्यरत मीडिया कर्मियों के बारे में दर्ज किए गए मामलों का इतिहास पता करना चाहिए ...! मेन स्ट्रीम मीडिया संस्थानों के मीडिया कर्मियों पर अनेक संज्ञेय आरोप लग चुके हैं और जेल तक जा चुके हैं। जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद फिर "काला/सफेद" कर रहे हैं।


मेरी निजी राय है कि, "चाहे छोटा संस्थान हो या बड़ा, टीवी चैनल हो या यूट्यूबर संस्थान, उसमें कार्य करने वाला व्यक्ति अगर अनैतिक, आपराधिक कृत्यों को कारित कर रहा है या उसका संरक्षण कर रहा है तो उसको चिन्हित किया जाना चाहिए और विधिक प्रक्रिया के तहत कार्यवाही बिना किसी भेदभाव की जानी चाहिए।"


लेकिन जो "व्यक्ति"  ईमानदारी व निष्ठा के साथ पत्रकारिता का कार्य कर रहा हो, फिर चाहे 'वो' किसी भी वर्ग (प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल) का पत्रकार हो, उसके अधिकारों का हनन नहीं किया जाना चाहिए।

 इसके लेखक हैं वरिष्ठ पत्रकार कानपुर से श्याम सिंह पंवार जी

 *प्रस्तुतकर्ता* 

सन्तोष कुमार 

पत्रकार भोपाल

9755618891, 9425163540

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