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नेतृत्व की वह मुस्कान जिससे भरोसा जन्म लेता है — कृष्णा गौर

लेखक : सन्तोष कुमार

नेतृत्व अक्सर बड़ी-बड़ी बातों में ऊँचे मंचों पर दिए गए भाषणों में या चमकदार प्रचार में खोजा जाता है लेकिन असली नेतृत्व वहाँ नहीं होता। वह वहाँ होता है जहाँ कोई नेता जनता की आँखों में आँखें डालकर मुस्कुराता है उनकी बात ध्यान से सुनता है और उस मुस्कान में एक ऐसा विश्वास छुपा होता है जो वर्षों तक दिलों में जगह बनाए रखता है। 


राज्यमंत्री श्रीमती कृष्णा गौर का नेतृत्व भी ऐसा ही है सीधा, सरल, स्नेह भरा और भरोसा जगाने वाला। गोविंदपुरा की गलियों में चलते हुए अक्सर एक दृश्य देखने को मिलता है कहीं महिलाएँ उन्हें अपने घर बुलाती दिखती हैं कहीं युवा अपने सपनों के बारे में उनसे बेझिझक बात करते हैं तो कहीं बुज़ुर्ग उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह दृश्य केवल एक नेता से जनता के जुड़ाव का नहीं बल्कि एक परिवार जैसे रिश्ते का प्रमाण है। कृष्णा गौर का व्यवहार ही उनकी सबसे बड़ी पहचान है। उनके चेहरे पर हमेशा रहने वाली शांत आत्मीय मुस्कान लोगों में यह विश्वास पैदा करती है कि हमारी बात सुनी जाएगी और उसका समाधान भी मिलेगा।उनका नेतृत्व किसी तेज़ हवा का झोंका नहीं बल्कि धीरे-धीरे बहने वाली वह सुखद हवा है जिससे राहत मिलती है उम्मीदें जागती हैं और भीतर एक स्थिर विश्वास जन्म लेता है। आज राजनीति में जहाँ आक्रामकता और शोरगुल बढ़ते जा रहे हैं वहाँ कृष्णा गौर की कार्यशैली सभी के लिए एक मिसाल है वे आवाज़ों को दबाकर नहीं बल्कि लोगों के मन की आवाज़ सुनकर निर्णय लेती हैं। यही कारण है कि लोग उन्हें केवल विधायक या मंत्री के रूप में नहीं देखते बल्कि एक संरक्षिका एक मार्गदर्शक के रूप में पहचानते हैं। विकास कार्यों की बात करें तो गोविंदपुरा ने उनके नेतृत्व में कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं सड़कें बनीं, स्ट्रीट-लाइटें लगीं, पार्क विकसित हुए, स्वास्थ्य सुविधाएँ सुधरीं और नागरिक-सुविधाएँ बढ़ीं। लेकिन इन विकास कार्यों से भी अधिक महत्वपूर्ण है उनकी कार्यशैली जिसमें हर परियोजना केवल सपना नहीं बल्कि ज़मीन पर उतरने वाली हकीकत बनती है। हर छोटे-बड़े काम में उनकी सक्रियता इस बात को सिद्ध करती है कि वे सिर्फ़ सरकारी योजनाओं को आगे नहीं बढ़ातीं बल्कि हर कदम पर यह सुनिश्चित करती हैं कि लाभ वास्तव में जनता तक पहुँचे। यही वास्तविक नेतृत्व है जो केवल दिशा नहीं देता बल्कि दायित्व भी निभाता है। राज्यमंत्री के रूप में उनका योगदान भी इसी भावनात्मक और मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित है। वे अपने विभागीय कार्यों में समाज के उस व्यक्ति को केंद्र में रखती हैं जो अक्सर व्यवस्था की भीड़ में खो जाता है। पिछड़े वर्ग,महिलाओं और युवाओं को अवसर और सुरक्षा देने का उनका प्रयास राजनीतिक निर्णय से ज्यादा मानवीय निर्णय प्रतीत होता है। उनकी नीति हमेशा यही रही है कि शासन तभी सार्थक है जब वह समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सके। कृष्णा गौर अपने नेतृत्व में न तो कठोरता का प्रदर्शन करती हैं और न ही सत्ता का। उनका सबसे बड़ा हथियार है उनकी मुस्कान। यह मुस्कान केवल सौजन्य नहीं यह भरोसे का दीपक है जो लोगों के भीतर यह भावना जगाती है कि हम अकेले नहीं हैं हमारे साथ एक ऐसी नेता है जो हमारे हर सुख-दुख में खड़ी है और शायद यही कारण है कि गोविंदपुरा में उनका नाम लेते ही चेहरे खिल उठते हैं। लोग उनसे जुड़ते हैं क्योंकि वे सत्ता की दूरी नहीं स्नेह की निकटता रखती हैं। वे हर परिवार के लिए उस संरक्षक की तरह हैं जो बिना शोर, बिना प्रदर्शन, बिना दिखावे के अपने क्षेत्र की बेहतरी के लिए लगातार कार्यरत रहती हैं। नेतृत्व पद से नहीं बनता,नेतृत्व व्यक्तित्व से बनता है और कृष्णा गौर का व्यक्तित्व हमें यह सिखाता है कि एक मुस्कान अगर वह सच्ची हो संवेदनशील हो और जनता के लिए समर्पण से भरी हो तो वह सिर्फ़ दिल नहीं जीतती वह भरोसा पैदा करती है। एक ऐसा भरोसा जो वर्षों तक कायम रहता है।

*इनसेट बॉक्स* 

मंत्री कृष्णा गौर का नेतृत्व किसी तेज़ नारे या बड़े मंच का मोहताज नहीं वह एक मुस्कान से शुरू होता है एक ऐसी मुस्कान जिसमें जनता को अपना अक्स दिखाई देता है। जब वे किसी बुज़ुर्ग का हाथ थामती हैं, किसी महिला की पीड़ा सुनती हैं या किसी युवा की उम्मीदों में हौसला भरती हैं तब महसूस होता है कि राजनीति कभी-कभी माँ जैसी भी हो सकती है। उनके व्यक्तित्व की यही गर्माहट लोगों को यह भरोसा दिलाती है कि वे सिर्फ़ नेता नहीं स्नेह का वह सहारा हैं जो हर दिल को जोड़ता है।

लेखक

सन्तोष कुमार संपादक 

दैनिक अमन संवाद समाचार पत्र भोपाल 

9755618891


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