*लेखक : सन्तोष कुमार*
मध्यप्रदेश के कुटीर खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग की पहचान कभी आत्मनिर्भरता परंपरा और ग्रामीण शिल्प की गरिमा से होती थी। लेकिन समय के साथ यह रोशनी धीरे-धीरे धुंधली पड़ने लगी करघे शांत हो गए चरखों की गति रुकने लगी कारीगरों का हुनर बाज़ारों में खोने लगा और हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी डगमगाने लगी। ऐसे कठिन दौर में एक संवेदनशील नेतृत्व ने इस मद्धम पड़ चुकी रोशनी में नई उजास भरी राज्यमंत्री दिलीप जायसवाल ने।
दिलीप जायसवाल ने विभाग संभालते ही यह साफ कर दिया कि कुटीर उद्योग और खादी केवल आर्थिक गतिविधियां नहीं बल्कि मध्यप्रदेश की आत्मा हैं। गांवों के कारीगर, बुनकर, हथकरघा श्रमिक, खादी कार्यकर्ता और छोटे उद्यमी ही इस विभाग की रीढ़ हैं। उन्होंने विभाग को सिर्फ योजनाओं और फाइलों की नजर से नहीं बल्कि उन मेहनतकश हाथों की संवेदना से देखा जिनके दम पर यह परंपरा जीवित है। उनके नेतृत्व में खादी एवं ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए व्यापक सुधार शुरू किए गए। बंद पड़ी बुनाई इकाइयों, चरखा केंद्रों और कुटीर उद्यमों का सर्वे करवाया गया। वित्तीय सहायता, आसान ऋण प्रक्रिया, नए डिजाइन, रंग संयोजन और आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए गए ताकि पारंपरिक खादी को आधुनिक बाज़ार में नई पहचान मिल सके। इससे कारीगरों की आय बढ़ी रोजगार पुनर्जीवित हुआ और खादी उत्पादों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। महिला स्व-सहायता समूहों को खादी आधारित गतिविधियों से जोड़ने का परिणाम यह हुआ कि हजारों महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान प्राप्त हुआ। राज्यमंत्री जायसवाल ने स्वयं कई क्षेत्रों का दौरा कर कारीगरों की समस्याएं समझीं और विभागीय योजनाओं को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाने का तंत्र मजबूत किया।
“एक जिला – एक उत्पाद” के तहत कई जिलों के खादी और कुटीर उत्पादों को राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनियों और ई-मार्केट प्लेटफॉर्म तक पहुँचाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुआ। खादी वस्त्र, मिट्टी शिल्प, हस्तशिल्प, लकड़ी कला, बेंत शिल्प और पारंपरिक ग्रामीण उत्पादों को नई बाजार रणनीति प्रदान की गई। इससे न केवल प्रदेश की ब्रांडिंग मजबूत हुई बल्कि ग्रामोद्योग की आत्मा को एक बार फिर गति मिली। खादी एवं ग्रामोद्योग को आधुनिक दुनिया से जोड़ने के लिए डिज़ाइन क्लिनिक, ट्रेनिंग सेंटर, डिजिटल मार्केटिंग कार्यशालाएँ और युवा उद्यमियों के लिए इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित किए गए। आज मध्यप्रदेश का खादी क्षेत्र नई ऊर्जा के साथ उभर रहा है उत्पादों की पैकेजिंग, गुणवत्ता, डिज़ाइन और प्रस्तुति में नया बदलाव स्पष्ट दिखाई देता है। मंत्री दिलीप जायसवाल की कार्यशैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनका उद्देश्य केवल विभागीय उपलब्धियों को बढ़ाना नहीं बल्कि उन परिवारों के जीवन में स्थायी बदलाव लाना है जिनके हाथों से खादी की असली खुशबू आती है। उनका नेतृत्व कहता है—“जहाँ करघे गूंजते हैं वहाँ गांव की आत्मा जीवित रहती है।”
आज मध्यप्रदेश के गांवों में फिर से आशा की लौ जल रही है। चरखे घूम रहे हैं करघों से नई रंगतें जन्म ले रही हैं और कारीगरों की हथेलियों पर मेहनत की चमक लौट आई है। खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग एक बार फिर राज्य के विकास का गौरवपूर्ण स्तंभ बनकर उभर रहा है और इसके केंद्र में खड़ा है संवेदना से भरा एक नेतृत्व।
*इनसेट बॉक्स*
गांवों की धूल भरी पगडंडियों पर चलते हुए जब मंत्री दिलीप जायसवाल उन जर्जर हो चुकी खादी और कुटीर इकाइयों की तरफ देखते हैं तो उन्हें सिर्फ टूटे हुए करघे,थमे हुए चरखे या बिखरे औज़ार नहीं दिखते उन्हें दिखाई देती है उन परिवारों की टूटी उम्मीदें जिनकी पीढ़ियों ने इसी कला को जीया था। यही पीड़ा उनके संकल्प की जड़ बन गई। मंत्री बनने के बाद उनका हर कदम इसी भावना से जन्म लेता है कि “किसी भी गांव की खादी बुझ न जाए, किसी भी परिवार का हुनर बेकार न पड़े।” यही संवेदना उनके नेतृत्व को शक्ति देती है और यही करुणा खादी एवं ग्रामोद्योग को नई रोशनी की ओर ले जा रही है।
लेखक सन्तोष कुमार
संपादक दैनिक अमन संवाद समाचार पत्र भोपाल
9755618891

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