जिनेश जैन
जबेरा/दमोह
प्राप्त जानकारी के अनुसार कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय कुसमी मानगढ़ से जुड़ा मामला अब महज एक प्रशासनिक शिकायत नहीं रह गया है बल्कि यह उस व्यवस्था की सख्त परीक्षा बन गया है जिसमें नियमों का ईमानदारी से पालन करने वाली महिला अधिकारी को ही संदेह और दबाव के दायरे में खड़ा कर दिया जाता है। विद्यालय की वार्डन श्रीमती मीना तिवारी जो शासन के निर्देशों के अनुरूप अनुशासन, पारदर्शिता और बालिकाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए संस्थान का संचालन कर रही हैं उनके खिलाफ लगातार शिकायतें की गईं जबकि बताया जा रहा है कि अब तक की प्रशासनिक जांच में किसी भी गंभीर अनियमितता की पुष्टि नहीं हो सकी है। विद्यालय परिसर में बिना अनुमति प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध और कड़े सुरक्षा प्रबंधों ने उन तत्वों के हितों पर रोक लगाई है जिन्हें पहले किसी न किसी रूप में पहुंच या लाभ मिलता रहा होगा और यही सख्ती उनके विरोध का कारण बताई जा रही है। शिकायतों के आधार पर 18 दिसंबर को तहसीलदार सोनम पांडे द्वारा किए गए आकस्मिक निरीक्षण में वार्डन एवं सहायक वार्डन से पूछताछ तो हुई लेकिन किसी ठोस गड़बड़ी का खुलासा नहीं हुआ।
इसके बावजूद भविष्य में शिकायत मिलने पर कार्रवाई की चेतावनी दी गई है जो अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। वार्डन श्रीमती मीना तिवारी का स्पष्ट कहना है कि वह छात्राओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकतीं और उनके खिलाफ जानबूझकर माहौल बनाया जा रहा है। जिला शिक्षा केंद्र प्रभारी एम.के. द्विवेदी फिलहाल शासकीय कार्य से भोपाल प्रवास पर हैं और उनकी सख्त कार्यशैली के चलते जिले के कस्तूरबा विद्यालयों में अनुशासन कायम है लेकिन सवाल यह है कि क्या इस अनुशासन को लागू करने वाली जमीनी महिला अधिकारी को पर्याप्त संस्थागत संरक्षण मिल पा रहा है। यह मामला किसी एक अधिकारी तक सीमित नहीं बल्कि उस प्रशासनिक सोच पर सवाल है जो एक ओर महिला सशक्तिकरण और बालिका सुरक्षा की बात करती है वहीं दूसरी ओर उन्हीं उद्देश्यों को जमीन पर उतारने वाली महिला अधिकारी को दबाव और संदेह के बीच अकेला छोड़ देती है। यदि शिकायतें निराधार हैं तो उन्हें स्पष्ट रूप से खारिज करना उतना ही जरूरी है अन्यथा संदेश यही जाएगा कि नियमों का पालन करना जोखिम और ईमानदारी एक दंड बनती जा रही है।

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