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मुख्यमंत्री- मंत्रियों के बंगलों में 15 साल से पसीना बहा रहे भृत्य आज भी अस्थायी

 समान प्रशासन विभाग मंत्रालय में मध्यप्रदेश की चौंकाने वाली हकीकत

मुख्यमंत्री- मंत्रियों के बंगलों में 15 साल से पसीना बहा रहे भृत्य आज भी अस्थायी

*परीक्षा के दो साल बाद भी परिणाम नहीं, नौकरियों के नाम पर सिर्फ छलावा!*

अमन संवाद/भोपाल


 जहाँ एक ओर मध्यप्रदेश सरकार बेरोजगारों को नौकरी देने के वादों की झड़ी लगाकर विकास का दम भर रही है, वहीं राज्य की सच्चाई सरकार के ही बंगलों की दीवारों से टकराकर कराह रही है। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों के बंगलों व दफ्तरों में पिछले 15 वर्षों से काम कर रहे लगभग 200 भृत्य, अब भी अनियमित, अस्थायी, और उपेक्षित हैं। इनमें चौकीदार, जमादार, फर्राश जैसे कर्मचारी शामिल हैं जो निष्ठा से वर्षों से सेवाएँ दे रहे हैं, लेकिन सरकार ने आज तक उन्हें ‘कर्मचारी’ का दर्जा तक नहीं दिया। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जो कर्मचारी सरकार के सबसे ऊँचे पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों की सेवा कर रहे हैं, उन्हें खुद अपने भविष्य की चिंता में दिन-रात संघर्ष करना पड़ रहा है।

*परीक्षा तो हुई लेकिन परिणाम गायब  ?*

वर्ष 2023 में 17 सितंबर को सामान्य प्रशासन विभाग ने 143 रिक्त पदों के लिए परीक्षा आयोजित की थी। विभाग के पत्र क्रमांक 20-28/2018/12-1 दिनांक 6 सितंबर 2023 के तहत इस प्रक्रिया को अमल में लाया गया, जिसमें 210 से अधिक अभ्यर्थियों ने भाग लिया। लेकिन दो साल होने को आए, परीक्षा का परिणाम आज तक जारी नहीं हुआ। सरकारें बदलती रहीं, घोषणाएँ होती रहीं, लेकिन इन कर्मचारियों के भविष्य पर हमेशा प्रश्नचिह्न लगा रहा। अगर यही हाल रहा तो इनमें से कई कर्मचारी सेवानिवृत्ति की उम्र तक पहुँच जाएंगे, बिना कभी नियमित हुए।

*मनमानी ऐसी कि मंत्रियों के पत्र भी धरे के धरे रह गए :*

विभागीय और प्रशासनिक उपेक्षा का आलम यह है कि राज्य सरकार के ही छह मंत्री और एक विधायक इस मामले में मुखर होकर मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं। इनमें उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, 

पूर्व मंत्री एवं सांसद भारत सिंह कुशवाहा, पशुपालन एवं डेयरी विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लाखन सिंह पटेल, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र भाव सिंह लोधी, विधायक महादेव मधु वर्मा ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नियमित करने पत्र लिखा है। इन जनप्रतिनिधियों ने परीक्षा परिणाम तत्काल जारी कर कर्मचारियों को नियमित करने की मांग की है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इससे यह साफ होता है कि या तो प्रशासनिक अमला पूरी तरह असंवेदनशील है, या फिर यह कोई सोची-समझी उपेक्षा नीति का हिस्सा है।

*सेवा लो लेकिन स्थायित्व मत दो की नीति पर काम:*

मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों के बंगलों व दफ्तरों में 15 वर्षों से अधिक समय से निरंतर सेवाएं देना, और उसके बावजूद भी आकस्मिक निधि से वेतन लेना, यह उस वादाखिलाफी की जीती-जागती मिसाल है जो सत्ता के गलियारों में आम होती जा रही है। चुनावों से पहले नौकरियों का शोर मचाया जाता है, लेकिन जिन लोगों ने वर्षों तक सेवा दी है, उन्हें नजरअंदाज करना क्या नैतिक पतन नहीं है?

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में ऐसे ही 54 भृत्यों को नियमित किया गया था। इसका उदाहरण आज भी मौजूद है, लेकिन मौजूदा सरकार की नीयत पर सवाल उठने लगे हैं।

*धैर्य की सीमा समाप्त, परिणाम घोषित करें  वरना आंदोलन :*

इन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का कहना है कि अब वे और प्रतीक्षा नहीं करेंगे। अगर शीघ्र ही परीक्षा परिणाम घोषित कर उन्हें नियमित नहीं किया गया तो वे आन्दोलनात्मक रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे। सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही कर्मचारी हैं जो बिना घड़ी देखे, बिना समय की परवाह किए, चौबीसों घंटे उनके लिए उपलब्ध रहते हैं। ऐसे लोगों की उपेक्षा, न केवल सामाजिक अन्याय है, बल्कि संवैधानिक और मानवीय मूल्यों की भी उपेक्षा है।

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