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दिव्यांगता को छात्रा ने अपने हौसलों के आगे नहीं बनने दिया दीवार



अमन संवाद/डिंडोरी 

दोनों हाथ बेकार होने पर सुगंती ने पैर में पेन फंसाकर लिखना शुरू किया

पिछले वर्ष दसवीं की बोर्ड परीक्षा 64 प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम श्रेणी में की उत्तीर्ण

आईएएस बनने का सपना

डिण्डौरी- आदिवासी बाहुल्य जिले में एक दिव्यांग छात्रा सुगंती ने दिव्यांगता की परिभाषा और मायने को ही बदलकर रख दिया है। छोटे से गांव सुनियामार में रहने वाली जन्म से ही दिव्यांग सुगंती अयाम ने दिव्यांगता को अपने हौसलों के आगे दीवार नहीं बनने दिया। सुगंती ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे को कैसे जीवंत करके रख दिया , हाथों की लकीरों पर कभी विश्वास मत करना क्योंकि तकदीरें तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। ये पंक्तियां सुगंती अयाम पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं क्योंकि सुगंती के दोनों हाथ जन्म से ही बेकार हैं बावजूद इसके उसने स्कूल जाना नहीं छोड़ा। दोनों हाथ बेकार होने की वजह से सुगंती ने पैर में पेन फंसाकर लिखना शुरू किया था और अब वो पैर से लिखने में कितनी कुशल और दक्ष हो चुकी है जिसका अंदाजा उसकी राइटिंग और दसवीं की मार्कशीट को देखकर बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। सामान्य व्यक्ति के हाथों से लिखने की स्पीड और हैंडराइटिंग से कहीं बेहतर सुगंती पैर से लिख लेती है। बीते वर्ष ही सुगंती ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा में 64 प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। इस बावद सुगंती ने बतलाया की वह पढ़ लिखकर अपने मजदूर माता पिता का सहारा बनना चाहती है साथ ही उसने आईएएस अधिकारी बनने की इच्छा भी जाहिर की है। सुगंती ने बताया की बचपन से ही उसकी मां ने पढाई के लिए प्रेरित किया और पैर से ही लिखना सिखाया है। सुगंती के माता पिता मेहनत मजदूरी करके जैसे तैसे उसे पढ़ा रहे हैं। सुगंती के गांव से स्कूल की दूरी करीब दस किलोमीटर है और स्कूल आने जाने में रोज बीस रूपये किराये में खर्च हो जाता है। सुगंती के दोनों हाथ बेकार होने के साथ साथ उसके पैर भी ठीक से काम नहीं करते हैं लिहाजा वो ठीक से चल भी नहीं पाती है ऐसे में उसकी बचपन की सहेली उसका पूरा ख्याल रखती है। सुगंती पीएम श्री हायर सेकेंडरी स्कूल गाड़ासरई में ग्यारहवीं की छात्रा है और स्कूल के शिक्षक सुगंती को विलक्षण प्रतिभा का धनी कहते हुए बताते हैं की सुगंती नियमित रूप से स्कूल आती है और बेहद ही अनुशासित तरीके से पढाई करती है।

80 प्रतिशत दिव्यांग है सुगंती -

सुगंती के पिता सरजू ने बताया की बचपन से ही सुगंती के अंदर पढ़ने की ललक थी जिसे देखते हुए काफी संघर्ष होने के बाद भी वे उसे जैसे तैसे पढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। सुगंती के पिता सरजू ने बताया की गांव में ही उनकी तीन चार एकड़ जमीन है जिसमें वो और उनकी पत्नी कृषि कार्य करते हैं साथ ही घर चलाने के लिए सरजू किसी और का ट्रैक्टर चलाने का काम भी करते हैं। सरजू ने बताया की सुगंती 80 प्रतिशत दिव्यांग है जिसका सर्टिफिकेट भी स्वास्थ्य विभाग से बना हुआ है जिसके आधार पर सुगंती को शासन से हर महीने 600 रूपये पेंशन मिल जाता है लेकिन पेंशन का पैसा तो गांव से स्कूल जाने के किराये में ही खर्च हो जाता है। सरजू ने सरकार से मदद की अपील की है।


नेता और जनप्रतिनिधियों ने नही ली सुध -

दिव्यांग छात्र सुगंती को मदद की दरकार है लेकिन आजतक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने उसकी सुध तक नहीं ली है। सुगंती आदिवासी समुदाय से आती है और इस समुदाय से जिले में विभिन्न राजनैतिक दलों के राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। डिंडौरी विधानसभा में करीब 17 सालों से मध्यप्रदेश कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता ओमकार मरकाम यहां विधायक हैं तो बीजेपी के कद्दावर आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र के सांसद हैं ,जो खुद को आदिवासियों का मसीहा बताते नहीं थकते हैं ।लेकिन इन्होने कभी सुगंती जैसे जरूरतमंद की सुध लेने की जहमत तक नहीं उठाई है। पहल के बाद


 जिलापंचायत अध्यक्ष रुदेश परस्ते मदद का आश्वासन देते हुए नजर आ रहे हैं।

समाज के लिए मिशाल -

आज सुगंती उन दिव्यांगों को हौंसला देते हुए नजर आ रही हैं जो अपने आप को असहाय और कमजोर मानकर समाज से खुद को अलग थलग कर लेती हैं। सुगंती के दोनों हाथ भले ही बेकार हों लेकिन हौसला आसमां को बाहों में समेट लेने का है इसलिए भी सुगंती के हौसले को सलाम करता है।

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