भारतीय संविधान ने देश के सुचारु संचालन के लिए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की स्थापना की और इनकी कार्य प्रणाली पर अंकुश लगाने के लिए तमाम उपबंध भी सृजित किए। विशेष तौर पर अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी का प्रावधान किया, ताकि शक्ति सम्पन्न होने पर तीनों अंगों के प्रति आम आदमी अपनी बात को स्वतंत्रता के साथ कह सके। इसी संवैधानिक अस्त्र ने लोकतन्त्र की संरक्षा और सुरक्षा के लिए मीडिया अर्थात प्रेस के रूप में चौथे स्तम्भ को स्वत:स्फूर्त और सर्वानुमति से अस्तित्व में आने की अनुमति दी और यही चौथा स्तम्भ आज लोकतन्त्र के तीनों प्रमुख अंगों को आईना दिखाने का काम बखूबी कर रहा है। लेकिन भारतीय लोकतन्त्र में आपातकाल का सामना करने वाले साहसी मीडिया जगत के साथ बीते कुछ दिनों से लगातार अमर्यादित आचरण की खबरें देखने को मिल रही हैं। मीडिया के प्रति पुलिस प्रशासन और नेताओं का रवैया निरन्तर असंवेदनशील, अशिष्ट और अमर्यादित होता जा रहा है।
मीडिया जैसे ही किसी भी घोटाले, गड़बड़ी और नैतिक-चारित्रिक पतन का खुलासा करती है राजनेताओं, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसा प्रतीत होता है कि यह उनके निजी मामले में दखल है। देश की जनता के साथ खिलवाड़ तो उनका विशेषाधिकार है उन्हें कोई चुनौती नहीं दे सकता। शायद पुलिस, प्रशासन और नेताओं को लगता है कि मीडिया के लोग आम आदमी होते हुए भी आखिर उनकी शक्ति सम्पन्नता और दबंगता का प्रतिकार कैसे कर सकते हैं? यही मानसिकता पत्रकारों के साथ पुलिस प्रशासन और नेताओं द्वारा की जाने वाली अभद्रता, अशिष्टता और हिंसा की घटनाओं में इजाफा कर रही है इसे रोकने के लिए स्वयं मीडिया जगत को ही नहीं बल्कि संविधान की रक्षा का भार संभालने वाले तीनों अंगों को भी गंभीरता से विचार कर प्रभावी कदम उठाने होंगे ताकि लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ की गरिमा और अस्तित्व से छेड़खानी करने वालों को माकूल सबक मिल सके।
आप सभी पाठकों लेखकों पत्रकार साथियों के इस मुददे पर विचार सादर आमंत्रित हैं।
सन्तोष कुमार - 9755618891, 9425163540
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