अमन संवाद/भोपाल
एक महिला ही है जो एक बेटी एक मां एक बहु और सबसे बड़ी बात बेटा न होने पर बेटे का फर्ज भी निभाती हैं,एक महिला से सभी को सबसे ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं चाहे घर हो या समाज सभी चाहते हैं महिलाएं घर का भी काम करें और बाहर का भी इसमें हर महिला परफेक्ट होती हैं क्योंकि बचपन से हमारे समाज में लड़कियों को सिखाया जाता हैं यही उनका धर्म है प्राचीन समय हो मध्यकालीन समय हो या आधुनिक समय महिलाओं के जीवन में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है
*शिक्षा* ...
बेटियों को पढ़ाया जाता है आज बहुत सारी योजनाएं हैं जिनके माध्यम से हर बेटी स्कूल तक पहुंच रही हैं परंतु वास्तव में उसके मानसिक विकास की बात करें तो अभी भी काफी सुधार होना बाकी लगता है घर में सभी चाहते हैं काम धाम में दक्ष रहे साथ में पढ़ाई करे बाहर निकलते ही उसे समाज और लोगों के उस नजरिए के अनुसार बदलना होता जैसे वो चाहते हैं स्कूल पहुंचने तक उसे एक लड़की होने का अहसास दिलाया जाता हैं उसके बाद वह पढ़ने के लिए अपने आपको तैयार करती है माना लड़कियां आज पढ़ाई में लड़कों से ज्यादा आगे है शायद इसलिए भी क्यूंकि उन्हें हर मुश्किल का सामना करना पड़ता है पर समानता का अधिकार अभी भी पूरी तरह नहीं क्यूंकि शिक्षित होने के बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं रखती
*सोशल मीडिया*...
सोशल मीडिया आज के दौर में बहुत जरूरी हो गया है पर इसे सही और समझदारी से उपयोग करने पर,आज महिलाओं के साथ जो अपराध बढ़ रहा है उसमें सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है समाज में बच्चों से लेकर बढ़ो तक सोशल मीडिया के माध्यम से अव्यवहारिक बाते पहुंच रही हैं, जिनका समाज में खास तौर से कम उम्र की बच्चियों पर गलत असर पड़ रहा है उनके साथ गलत हो रहा है ।
*राजनीतिक छेत्र*....
राजनीति के छेत्र में आज भी महिलाओं की भूमिका नाम मात्र है पंचायत से लेकर संसद तक महिलाओं को स्थान दिया गया है पर ज्यादातर उनके स्थान पर किसी पुरुष को ही कमान दे दी जाती है चाहे जिस रूप में जैसे पति के रूप
संपूर्ण रूप से देखा जाय तो आज भी महिलाएं पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हैं चाहे गांव की हो या शहर की, शिक्षित हो या अशिक्षित किसी न किसी रूप में समाज उनको मानसिक गुलाम बनाने में पीछे नहीं है जितनी भी रूढ़ी प्रथाएं हे सभी महिलाओं को ही निभानी होती हैं पुरुषों को इनसे कुछ हद तक दूर रखा जाता हैं चौंकाने वाली बात तो यह है कि ये सब में भी महिलाओं का ही ज्यादा हाथ होता है, महिलाएं ही बचपन से अपनी बच्चियों को ये सब सीख देती है माना समाज में महिला पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं पर कही न कही आज भी महिलाओं पर जो अत्याचार हो रहे हैं उसमें कमी नहीं आई आज शिक्षा का स्तर महिलाओं का अच्छा है पर फिर भी कही न कही प्रताड़ना का शिकार होती हैं
सब कुछ सहते हुए आज महिलाओं ने अपनी अलग पहचान बनाई है
,,कभी रुकती नहीं कभी झुकती नहीं कभी थकती नहीं में नारी हूं अपने सम्मान के लिए कभी पीछे हटती नहीं,,....
लेखक
वंदना तेकाम
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